कौन है?-
"ठकराल साहब को ऐसी जगह पर आना ही नहीं चाहिए था।" आरव ठकराल की हालत देख कर तिलमिला उठा। फार्महाउस पर घटी घटनाओं के बारे में निर्मोही को बताकर मैंने सबसे बड़ी गलती कर दी थी। काश कि मैं ऐसा न करता। ना ही मार्गरेटा की चिंता निर्मोही करती---और ना ही निर्मोही की बात मान कर ठकराल इस मनहूस जगह पर कदम रखता। आरव ने जैसे ही बाइक स्टार्ट किया वैसे ही डरावनी हँसी ने आसपास के माहौल को खौफ़ की गिरफ्त में जकड़ लिया। खिलखिलाती हुई वह ऐसी हँसी थी जैसे कोई उसकी खिल्ली उड़ा रहा था। हेडलाइट की रोशनी चीख चीख कर शैतानी रूह की मक्कारी बयान कर रही थी। आरव चारों खाने चित हो चुका था। होता भी क्यों नहीं? उसके साथ दिल को दहला देने वाले वाकये जो पेश आ रहे थे। बाइक स्टार्ट करने के बाद आरव जहाँ का तहाँ रुक गया। उसकी दशा भंवर में फँसी नाव जैसी थी। किंकर्तव्यविमूढ़ दशा में आरव उसी जगह को देख रहा था जहाँ कुछ देर पहले उसमें इंस्पेक्टर ठकराल की बदसूरत बॉडी देखी थी। आरव का दिमाग चक्करगिन्नी की तरह घूम रहा था। आरव को ऐसा लग रहा था की 440 वाल्ट के झटके बार-बार खाने से वो वही वीरान जगह पर बेहोश होकर ढेर हो जाएगा। इंस्पेक्टर ठकराल का बुलेट यहाँ मौजूद है इसका मतलब वो यही पर ही होना चाहिए। शैतानी रूहने भले ही उसे एक बार झांसा दिया। लेकिन मेरा दिल कह रहा है ठकराल सर यही कहीं होने चाहिए। क्योंकि हो सकता है शैतानी रूह मुझे गुमराह करके यहाँ से भगा देना चाहती हो।' इसी सोच के कारण आरव अपनी बाइक का इंजन चालू रख कर नीचे उतर गया। वह आसपास के इलाके को एक बार ध्यान से देख लेना चाहता था। ऐसा ना हो कि इस्पेक्टर ठकराल को मदद की जरूरत हो और वो यहाँ तक आकर वापस चला जाए और ठकराल सर मदद के लिए सिर्फ हाथ मलते रह जाए। आरव जैसे ही बाइक से नीचे उतरा शैतानी रूह ने अपनी डरावनी हँसी को रोक लिया। मोबाइल टॉर्च लेकर सड़क के किनारे किनारे चलने लगा। सड़क की दोनों साइड पर घने पेड़ पौधे मौजूद थे। कुदरत ने जमीन पर जैसे सूखे पत्तों की चादर बिछा दी हो ऐसा नजारा था। सूखे पत्तों पर चलने के कारण आरव के कदमों की आहट सुनसान माहौल पर हावी हो चुकी थी। उसने अपनी बाइक का इंजन जानबूझकर चालू रखा था। क्योंकि कहीं आसपास इंस्पेक्टर ठकराल होगा तो बाइक की आवाज सुनकर जरूर अपनी मदद के लिए गुहार लगाएगा। जैसे-जैसे आरव आगे बढ़ता गया उसका दिलो-दमाग हताशा के बोझ तले दबने लगा था। अब उसे एक डर यह भी सताने लगा था कि कहीं उसकी सारी मेहनत बेकार न जाए। सड़क के दोनों किनारे देखते देखते वह थक चुका था अब उसका आगे बढ़ने का मन करा भी नहीं था। उसने अपने कदम वहीं पर रोक लिए। एक गहरी सांस लेकर आरव वहीं से वापस मुड़ गया। मुड़ते ही उसने जैसा ही पहला कदम आगे बढ़ाया ठीक तभी साइड पर मौजूद झाड़ियों से किसी के कराह ने की आवाज सुनाई दी। आरव ने मोबाइल टॉर्च जलाकर आवाज की दिशा में देखा। सूखे पत्तों की चद्दर पर कराहता हुआ इंस्पेक्टर ठकराल अपने हाथ पैर पटक रहा था। जैसे वह बुरी तरह जख्मी हालत में वहाँ पड़ा था। और उसे इस वक्त काफी दर्द हो रहा था। भागता हुआ आरव इस्पेक्टर ठकराल के पास पहुँच गया। वह ठकराल ही था--- क्योंकि बार-बार तो आरव की आँखें धोखा खाने से रही। उसने ठकराल को अपने कंधे का सहारा देकर वहाँ से उठाया। और बाइक के पास ले आया। इंस्पेक्टर ठकराल काफी जख्म हो चुका था। "आप घबराइए मत सर, मैं आपको कुछ नहीं होने दूँगा।" आरव ने इंस्पेक्टर ठकराल को आश्वासन देते हुए कहा, "मैं जल्द से जल्द आपको घर पहुँचा दूँगा। मुझ पर यकीन रखिए।" आरव को मालूम नहीं था कि ठकराल उसकी बात को सुन भी रहा है या नहीं। वह बस अपनी धुन में कहता जा रहा था। "मुझे मालूम नहीं है कि आपके साथ क्या हुआ है? मुझे मालूम नहीं है कि आप यहाँ कैसे पहुँचे? जो भी है मैं आपको सेफ जगह पहुँचा दूँगा।" इंस्पेक्टर ठकराल की हालत बहुत बुरी थी। सीने और उसके घुटनों से कपड़े फट गए थे। शायद उन्हें जमीन पर घसीटा गया था जिसके कारण चमड़ी छिल गई थी। ठकराल के सीने और घुटनों में लहू जमा हुआ देखकर आरव का खून खौल उठा। ठकराल सर को कंधे का सहारा देकर वह कच्ची सड़क पर ले आया। जहाँ उसकी बाइक खड़ी थी। बाइक की हेडलाइट के उजाले में वहाँ तक पहुँचने में आसानी हुई। आरव ठकराल को वहाँ तक ले आया। धूल मिट्टी ठकराल के चेहरे पर चिपक गई थी। उसकी आँखें सूजी हुई और लाल थी। ठकराल को लेकर उस जगह पर एक मिनट भी रुकना खतरे से खाली नहीं था। तभी तो आरव ने उन्हें अपनी बाइक पर बैठाया। फिर वह उनके पीछे बैठ गया। पीछे बैठकर बाइक चलाने में थोड़ी दिक्कत आ सकती थी लेकिन आरव हार मानने वालों में से नहीं था। उसके आगे बैठा ठकराल बाइक की टंकी पर लुढक गया। उनकी ऐसी हालत देखकर आरव को उसपर रहम आया। उसने बाइक को भगाया। शहरी इलाके में पहुँचने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा। वहीं पर उसके दोस्त मोहन का घर था। आरव ने बाइक को उधर मोड़ लिया और सीधे उसके आँगन में ले जाकर रोका। इंस्पेक्टर ठकराल को सहारा देकर नीचे उतारा और वह उन्हें फर्श पर बिठाने लगा। लेकिन ठकराल जैसे होश में ही नहीं थे--- नीचे बैठते ही जमीन पर ढेर हो गए। अराव ने जोर-जोर से मोहन के घर का दरवाजा ठोका। और मोहन का नाम लेकर पुकारने लगा। काफी देर बाद उसने किसी के कदमों की आहट नजदीक आती हुई सुनाई दी। दरवाजा खुला। सामने अपनी आँखें मसलता हुआ मोहन खड़ा था। "इतनी रात गए कहाँ से आ रहा है यार तू?" मोहन ने पूछा। "वह सब बातें हम बाद में कर लेंगे। पहले तू इंस्पेक्टर ठकराल को घर में लेने में मेरी मदद कर। वह काफी जख्मी और बेहोश है।" "क्या?" मोहन हैरत से बाहर देखने लगा। " इंस्पेक्टर ठकराल? मगर उनकी ऐसी हालत किसने की?" "अरे मेरे बाप! तुझे सब कुछ बताऊंगा फिलहाल उन्हें घर में लेना बहुत जरूरी है।" मोहन आरव की बात सुनकर चुप हो गया। दोनों ने मिलकर ठकराल को एक खाली पड़े कमरे की बेड पर लेटाया। "यह तो बुरी तरह जख्मी है आरव----इन्हें फ़ौरन अस्पताल ले जाना पड़ेगा।" मोहन ने कहा। "हाँ, लेकिन उससे पहले उन्हें होश में लाना बहुत जरूरी है!" आरव बोलते बोलते गंभीर हो गया। आरव की आँखों के सामने इस वक्त ठकराल का वह बदसूरत चेहरा आ गया जिसे फार्म हाउस पहुँचते ही उसने देखा था। @@@@@@